Saturday, October 6, 2018

जानिए कैसे कब और क्या क्या हुआ ,सुहैब इलियासी पत्नी हत्या मामले में ... तारीख दर तारीख ...बिंदुवार विवेचना

                    

निचली अदालत द्वारा सुहैब इलियासी को उम्रकैद की सजा सुनाने के मामले में हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने अलग-अलग बिंदुओं पर सवाल उठाते हुए विस्तार से टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने जिस गवाह की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा किया था, उसे समझने में चूक गई। फोरेंसिक साक्ष्य को भी ठीक से नहीं समझ सकी। हाई कोर्ट ने इलियासी के पीएसओ की गवाही पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया, जो घटना स्थल पर सबसे पहले पहुंचा था। इसने अपनी गवाही में कहा था कि उसे आरोपी ने खुद वहां बुलाया था और मृतक को उठाने में मदद करने के लिए कहा था।
बेंच ने कहा कि उस पीएसओ के बयान को कोई चुनौती नहीं दी गई, जिसने कहा था कि मृतक ने इससे गाड़ी में बोला कि उससे गलती हो गई है, जिससे अभियोजन की थ्योरी खुद ब खुद गलत साबित हो जाती है कि इलियासी ने पत्नी की हत्या की।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस पीएसओ के बयान मात्र से सूइसाइड की थ्योरी सामने आती है। इससे पता चलता है कि मृतक अपने को चाकू घोंप कर पछता रही थी। मृतक को घटना के बाद मेडिकल सहायता में देरी न होने और मौत के बाद आरोपी को अस्पताल में बुरी तरह टूटते हुए देखे जाने को भी हाई कोर्ट ने अपने इस फैसले का आधार बताया।
वहीं, पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने अंजू की बहन रश्मि सिंह के बयान को अविश्वसनीय व झूठा माना था।रश्मि ने एसडीएम को भेजे बयान में लिखा था कि 10 जनवरी 2000 को जब उन्होंने अंजू को फोन किया था तो फोन सुहैब ने उठाया। बाद में फोन छीनकर अंजू ने कहा था कि दीदी, मुझे यहां से ले चलो, जबकि 8 जनवरी 2010 को जिरह के दौरान रश्मि ने बयान दिया कि अंजू ने फोन पर कहा था कि दीदी, मुझे यहां से ले चलो, नहीं तो वह मुझे मार डालेगा। रश्मि ने अदालत में भी स्वीकार किया कि उन्होंने ‘वह मुझे मार डालेगा’ बाद में जोड़ा था। अदालत ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर गौर नहीं किया।
रश्मि ने आरोप लगाया था कि सुहैब के अन्य युवती से अवैध संबंध हैं, लेकिन जब कोर्ट ने सबूत मांगा तो रश्मि ने कहा उनके पास सबूत नहीं है। पीठ ने निजी सुरक्षाकर्मी (पीएसओ) के बयान को लेकर भी निचली अदालत को कठघरे में खड़ा किया। निचली अदालत ने फैसले में कहा था कि याची ने अंजू को बचाने या खुद को चाकू मारने से रोकने की कोशिश नहीं की।
अदालत ने कमरे में सबसे पहले दाखिल होने वाले सुहैब के पीएसओ के बयान को उल्टे तरीके से लिया। पीएसओ के बयान को अगर ध्यानपूर्वक पढ़ा जाए तो उसने कहा कि सुहैब ने दरवाजा खोलकर उसे बुलाया था और अंजू को उठाने में मदद करने को कहा था। अंजू ने उसे बताया था कि उनसे गलती हुई है। पीठ ने कहा कि पीएसओ को अभियोजन ने न तो दुश्मन माना और न ही दोबारा जिरह के लिए बुलाया। अंजू ने खुद माना कि उनसे गलती हुई है, ऐसे में यह मामला खुदकशी का है। पीठ ने प्रतिवादी पक्ष की वह दलील खारिज कर दी, जिसमें तर्क दिया था कि अंजू कहना चाहती थीं कि उन्होंने सुहैब से शादी करके गलती की।

नहीं मिले सुहैब के अंगुलियों के निशानबाथरूम व बेडरूम से लिए गए 20 नमूनों की जांच रिपोर्ट में सुहैब की अंगुलियों के निशान कहीं भी नहीं पाए गए। पीठ ने कहा कि मौका-ए-वारदात से लिए गए किसी भी नमूने में याचिकाकर्ता के निशान नहीं मिले तो निचली अदालत ने कैसे मान लिया कि फोरेंसिक रिपोर्ट अभियोजन पक्ष के केस का समर्थन कर रही है।
हत्या का मामला नहीं हो सका साबित
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दहेज हत्या का मामला शुरू किया, लेकिन वह अपने प्रयास में सफल नहीं हुआ। हत्या का मुकदमा कुछ शंकाओं के बावजूद साबित किया गया। जांच के लिए दो मेडिकल बोर्ड बनाए गए। एक बोर्ड ने हत्या बताया तो दूसरे ने आत्महत्या। फैसले में इस शंका को भी दूर नहीं कराया गया। मौके पर गोलियों से भरी पिस्टल थी तो अंजू ने आत्महत्या के लिए चाकू चुना? चाकू से ज्यादा तकलीफ होती है। मेडिकल बोर्ड ने इस पर कहा था कि यह आत्महत्या करने वाले पर निर्भर करता है कि वह कौन सा हथियार चुने।
बरी होने के पीछे सामने आए ये 10 तथ्य
1. दिल्ली हाई कोर्ट ने मृतक यानी अंजू की मां और दो बहनों के इस बयान को भरोसे लायक नहीं माना, जिसमें उन्होंने कहा था 'सुहैब दहेज के लिए पत्नी को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था।'
2. मेडिकल बोर्ड के इस निष्कर्ष को भी कोर्ट ने ठुकरा दिया कि साक्ष्य अंजू की हत्या की ओर इशारा कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी यह साबित करना था कि मौत की वजह हत्या ही थी लेकिन अभियोजन इस अहम कड़ी को ही जोड़ने में नाकाम रहा।
3. हाई कोर्ट ने मृतक की बहन पर शक जताते हुए कहा कि इलयासी को दोषी साबित करवाने में उनका निजी हित रहा। इन्हीं के बयान पर केस दर्ज हुआ और जांच शुरू हुई।
4. हादसे के बाद सुहैब इलियासी का जो बर्ताव रहा, उसे भी कोर्ट ने एक हत्यारे का बर्ताव मानने से इनकार कर दिया। इन सबके अलावा हाई कोर्ट ने इलयासी के पीएसओ की गवाही पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया।
5. सुहैब इलयासी के पीएसओ ने अपनी गवाही में कहा था कि उसे आरोपी ने खुद वहां बुलाया था और मृतक को उठाने में मदद करने के लिए कहा था। पीएसओ के मुताबिक, अस्पताल ले जाए जाने के दौरान मृतक लगातार उससे गलती होने की बात कह रही थी।
6. बयानों के आधार पर पाया गया कि मृतक अपने को चाकू घोंप कर पछता रही थी। 
7. कोर्ट ने यह भी पाया कि मृतक को घटना के बाद मेडिकल सहायता में देरी न होने और मौत के बाद सुहैब इलियासी को अस्पताल में बुरी तरह टूटते हुए देखे जाने को भी हाई कोर्ट ने अपने फैसले का आधार बताया।
8. बाथरूम व बेडरूम से लिए गए 20 नमूनों की जांच रिपोर्ट में सुहैब की अंगुलियों के निशान कहीं भी नहीं पाए गए। 
9. अभियोजन पक्ष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दहेज हत्या का मामला शुरू किया, लेकिन वह अपने प्रयास में सफल नहीं हुआ।
10. अंजू की बहन रश्मि ने एसडीएम को भेजे बयान में लिखा था कि 10 जनवरी 2000 को जब उन्होंने अंजू को फोन किया था तो फोन सुहैब ने उठाया। बाद में फोन छीनकर अंजू ने कहा था कि दीदी, मुझे यहां से ले चलो, जबकि 8 जनवरी 2010 को जिरह के दौरान रश्मि ने बयान दिया कि अंजू ने फोन पर कहा था कि दीदी, मुझे यहां से ले चलो, नहीं तो वह मुझे मार डालेगा। रश्मि ने अदालत में भी स्वीकार किया कि उन्होंने ‘वह मुझे मार डालेगा’ बाद में जोड़ा था। अदालत ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर गौर नहीं किया।
कब क्या हुआ10 जनवरी 2000 : अंजू इलियासी अपने पूर्वी दिल्ली आवास में मृत मिलीं।
18 जनवरी : एम्स में डॉक्टरों के पैनल ने कहा कि चोटें आत्मघाती हैं।
28 मार्च : ससुराल के लोगों की शिकायत पर सुहैब इलियासी को दहेज उत्पीड़न और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
17 जुलाई : हत्या की धारा जोड़ने केलिए अभियोजन पक्ष ने अदालत में आवेदन दिया। इसे 3 फरवरी 2004 को अदालत ने खारिज कर दिया।
12 जुलाई 2005 : अंजू की मां ने नए सिरे से जांच के लिए आवेदन किया। अदालत ने खारिज कर दिया।
19 अगस्त 2010: हत्या की धारा जोड़ने के लिए दोबारा आवेदन दिया। निरस्त किए जाने पर अंजू की मां ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
12 अगस्त 2014 : हाई कोर्ट ने हत्या का आरोप जोड़ने की अनुमति दी।
16 दिसंबर 2017 : कड़कड़डूमा कोर्ट ने सुहैब को हत्या का दोषी माना।
20 दिसंबर : अदालत ने सुहैब को उम्रकैद की सजा सुनाई।
13 मार्च 2018: सुहैब ने फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
5 अक्टूबर 2018 : हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद करते हुए सुहैब को बरी कर दिया ......

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