Monday, October 8, 2018

भ्रष्टाचार को मिटाने के नाम पर सत्ता में पहुंची मोदी सरकार अपने वादे पर खरा नहीं उतर पाई :- न्यूयॉर्क टाइम्स

     


अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने लंबे चौड़े एनालिसिस में कहा है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का सबसे गंभीर आरोप लगा है.



भ्रष्टाचार पर कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा :-

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक कांग्रेस को भ्रष्टाचार और पसंदीदा कॉरपोरेट की मदद वालों की पार्टी के तौर पर घेरने वाली बीजेपी के साथ गेम पलट गया है. रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दे तलाश रही कांग्रेस को राफेल सौदे के तौर पर बहुत बड़ा मामला हाथ लग गया है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 4 बड़े सवाल उठे हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिला है.

मोदी ने 36 राफेल विमान के लिए सौदे पर नए सिरे से बातचीत क्यों की ?

लड़ाकू विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद भारत की एक बिजनेस फेमिली को सौदे के लिए क्यों चुना गया?

विमान का दाम इतना ज्यादा कैसे हो गया?

 मोदी जी सौदे के बारे में पूरी जानकारी क्यों नहीं दे रहे हैं?


अखबार के मुताबिक मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार विपक्ष को इतना सॉलिड मुद्दा मिला है और वो अगले चुनाव तक पीएम मोदी और उनकी पार्टी पर दबाव बनाए रखेगा.


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाषणों और सोशल मीडिया में इस मामले को गरमाए हुए हैं कि मोदी ने अपने दोस्त को फायदा पहुंचाने के लिए विमान की कीमत पुराने दाम से तीन गुना कर दी.

राफेल डील में विवाद ने मुश्किल बढ़ाई:-

राफेल डील पर 2015 में दोबारा चर्चा में आई जब पीएम मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान ऐलान किया कि भारतीय एयरफोर्स के लिए 36 रफाल विमान खऱीदने का सौदा हो गया है. डसॉल्ट एविएशन से विमान खरीदने पर किसी को हैरानी नहीं हुई क्योंकि भारत की कई सालों से इस पर बातचीत चल रही थी.



लेकिन सौदे में नाटकीय मोड़ साल भर बाद आया जब कहा गया कि विमान के कलपुर्जे बनाने में डसॉल्ट एविएशन जिन भारतीय कंपनियों से करार किया उसमें अंबानी परिवार की कंपनी को चुना गया जिसे विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं था.



फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने हाल में ये कहकर विवाद बढ़ा दिया कि अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव मोदी सरकार ने दिया था और फ्रांस के पास उससे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

अखबार के मुताबिक अनिल अंबानी को पीएम मोदी का करीबी माना जाता है और अनिल ने पीएम की तारीफ में उन्हें बादशाहों का बादशाह कहते हुए हिंदू मान्यता में सबसे महान हीरो करार दिया था.

अखबार के मुताबिक ज्यादातर राजनीतिक पंडित अभी भी अगले चुनाव में पीएम मोदी को आगे बता रहे हैं पर मुकाबला कड़ा होने लगा है. इकोनॉमी मुश्किल में दिख रही है और लोगों को रोजगार देने का सरकार का वादा अभी भी अधूरा है.

विपक्षी पार्टियों और खासतौर पर कांग्रेस नेताओं ने राफेल सौदा के जरिए मोदी सरकार पर हमले जारी रखे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ट्विटर और भाषणों पर मोदी को को घेरने में लगे हुए हैं. लेकिन पीएम मोदी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं.

‘पीएमओ का कोई प्रवक्ता नहीं’

अखबार के मुताबिक पीएम ने खुद इस मुद्दे पर कुछ बोलने के बजाए अपने मंत्रियों और पार्टी नेताओं को लगा दिया है लेकिन जानकारों के मुताबिक ये स्ट्रैटेजी काम नहीं कर रही है.

कार्नेगी एंडोमेंट इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया मामलों के डायरेक्टर मिलन वैष्णव के मुताबिक...

इस सरकार के साथ लगातार यही दिक्कत है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में कोई स्पष्ट प्रवक्ता नहीं है, कोई मीडिया सलाहकार नहीं है. मुझे लगता है कि इसी वजह से ज्यादातर मामलों में वो ठोस और व्यवस्थित दलील नहीं रख पाते.

‘मोदी के लिए मुश्किलें बढ़ीं’

वैष्णव के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे लेकिन अपनी इमेज पर दाग नहीं लगने दिए थे. इस मामले के बाद विपक्ष पीएम मोदी को भी कह सकता है आप भी बाकियों जैसे ही निकले.

भारत के रक्षा मंत्रालय ने राफेल सौदे पर किसी गड़बड़ी से इनकार किया है. डसॉल्ट एविएशन ने भी पार्टनर चुनने के लिए सरकारी दबाव को मना कर दिया है. मोदी सरकार के समर्थक भी कह रहे हैं कि रिलायंस ग्रुप को पार्टनर बनाने में कुछ गलत नहीं है.

रिलायंस के प्रवक्ता का दावा है कि कई ऐसी भारतीय कंपनियां भी रक्षा प्रोडक्शन में कूद पड़ी हैं जिनका इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है. इसलिए ये कोई मुद्दा ही नहीं है.

कांग्रेस की दलील है कि राफेल का मूल सौदा 126 रफाल विमान खरीदने का था जिसमें 108 भारत में बनाए जाने थे. हर विमान की कीमत 10 करोड़ डॉलर के आसपास थी और उस वक्त सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को पार्टनर के तौर पर चुने जाने का प्रस्ताव था.




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