Sunday, October 28, 2018

एक बार भारत में पत्रकारिता की तैयारी कर रहे छात्र कोलंबिया स्कूल ऑफ़ ज़र्नलिज्म जरुर जाइये ✍️The Real Hero Ravish Kumar

           

कोलंबिया स्कूल ऑफ़ ज़र्नलिज्म का एक सफ़र 

1912 में जब हम अपनी आज़ादी की लड़ाई की रूपरेखा बना रहे थे तब यहाँ न्यूयार्क में जोसेफ़ पुलित्ज़र कोलंबिया स्कूल ऑफ़ जर्नलिज़्म की स्थापना कर रहे थे। सुखद संयोग है कि 1913 में गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर में प्रताप की स्थापना कर रहे थे। तो ज़्यादा दुखी न हो लेकिन यह संस्थान पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। मोहम्मद अली, शिलादित्य और सिमरन के मार्फ़त हमने दुनिया के इस बेहतरीन संस्थान को देखा। यहाँ भारतीय छात्र भी हैं और अगर ज़रा सा प्रयास करेंगे तो आपके लिए भी दरवाज़े खुल सकते हैं। किसी भी प्रकार का भय न पालें बल्कि बेहतर ख़्वाब देखें और मेहनत करें। 


तो सबसे पहले हम इसके हॉल में घुसते हैं जहाँ 1913 से लेकर अब तक पढ़ने आए हर छात्रों के नाम है। मधु त्रेहन और बरखा दत्त यहाँ पढ़ चुकी हैं। और भी बहुत से भारतीय छात्रों के नाम है। पुलित्ज़र की प्रतिमा और उनका वो मशहूर बयान जिन्हें हर दौर में पढ़ा जाना चाहिए। आपके लिए हमने पुलित्ज़र पुरस्कार के मेडल की तस्वीर भी लगाई है। 




भारत में पत्रकारिता के दो से तीन अच्छे शिक्षकों को छोड़ दें तो किसी संस्थान में संस्थान के तौर पर कोई गंभीरता नहीं है। सवाल यहाँ संस्थान, संसाधन और विरासत की निरंतरता का है? मेरी बातों पर फ़ालतू भावुक न हो। यहाँ मैंने देखा कि पत्रकारिता से संबंधित कितने विविध विषयों पर पढ़ाया जा रहा है। प्रतिरोध की पत्रकारिता का पोस्टर आप देख सकते हैं। बचपन के शुरूआती दिनों की पत्रकारिता पर भी यहाँ संस्थान है। हिंसा क्षेत्रों में रिपोर्टिंग के दौरान कई पत्रकारों को मानसिक यातना हो जाती है। उन्हें यहाँ छात्रवृत्ति देकर बुलाया जाता है। उनका मनोवैज्ञैनिक उपचार भी कराया जाता है। यहाँ Dart centre for Journalism and Trauma है। खोजी पत्रकारिता के लिए अलग से सेंटर हैं। दुनिया के अलग अलग हिस्से से आए पत्रकार या अकादमिक लोग यहाँ प्रोफ़ेसर हैं। भारत के राजू नारीसेट्टी यहाँ पर प्रोफ़ेसर हैं। राजू ने ही मिंट अख़बार को स्थापित किया। 



यह क्यों बताया? इसलिए बताया कि हमारे संस्थान गोशाला हो चुके हैं जहाँ एक ही नस्ल की गायें हैं। वहाँ न शिक्षकों में विविधता है न छात्रों में। और विषयों की विविधता क्या होगी आप समझ सकते हैं। IIMC के छात्र अपने यहाँ journalism of resistance का अलग से कोर्स शुरू करवा सकते हैं। यह नहीं हो सकता तो journalism of praising Modi शुरू करवा सकते हैं। यह भी एक विधा है और काफ़ी नौकरी है। लेकिन पहले जोसेफ़ पुलित्ज़र ने लोकतंत्र और पत्रकारिता के बारे में जो कहा है, वो कैसे ग़लत है, उस पर एक निबंध लिखें। फिर देखें कि क्या उनकी बातें सही हैं? कई बार दौर ऐसा आता है जब लोग बर्बादी पर गर्व करने लगते हैं। उस दौर का भी जश्न मना लेना चाहिए ताकि ख़ाक में मिल जाने का कोई अफ़सोस न रहे। वैसे भारत विश्व गुरु तो है ही



इसके बाद अली ने हमें कुछ क्लास रूम दिखाए। एप्पल के विशालकाय कंप्यूटर लगे हैं। क्लास रूम की कुर्सियाँ अच्छा हैं। सेमिनार हॉल भी अच्छा है। झाँक कर देखा कि ब्राडकास्ट जर्नलिज़्म को लेकर अच्छे संसाधन हैं। यहाँ हमारी मुलाक़ात वाशिंगटन में काम कर रहे वाजिद से हुई। वाजिद पाकिस्तान से हैं। उन्होंने बताया कि जिस तरह मैं भारत में गोदी मीडिया का इस्तेमाल करता हूँ उसी तरह से पाकिस्तान में मोची मीडिया का इस्तेमाल होता है। यानी हुकूमत के जूते पॉलिश करने वाले पत्रकार या पत्रकारिता। 

गुज़ारिश है कि आप सभी तस्वीरों को ग़ौर से देखे। सीखें और यहाँ आने का ख़्वाब देखें। हिन्दी पत्रकारिता में  बेहतरीन छात्र आते हैं। वे यह समझें कि पत्रकारिता अध्ययन और प्रशिक्षण से भी समृद्ध होती है। भारत के घटिया संस्थानों ने उनके भीतर इस जिज्ञासा की हत्या कर दी है लेकिन फिर भी। मैंने उनके लिए यह पोस्ट लिखा है ताकि वे नई मंज़िलों की तरफ़ प्रस्थान कर सकें। अभी आपकी मंज़िल हिन्दू-मुस्लिम डिबेट की है। सत्यानाश की जय हो ।



No comments:

Featured Post

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प...

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प... : जिगर का टुकड़ा तड़पता रहा मां बेटे को लेकर इस हॉस्पिटल से उस हॉस्...