ग्वालियर का बंदी दाता छोड़ गुरुद्वारा शांति का मार्ग है। पहाड़ी रास्तों से गुज़रते वक्त आप ग्याहरवाँ सदी की शिल्प कला से परिचित होते हैं। बेहद सुन्दर। शहर से हंगामे से कटा हुआ है। बंदी दाता छोड़ साहिब छठे गुरु श्री हरगोविंद सिंह जी को कहा जाता है।
जहागींर के समय दिल्ली आए तो ख़ूब संवाद हुआ। दिल्ली से आगरा की तरफ़ जहांगीर के साथ शेर के शिकार पर निकले तो जहांगीर को बचाया। फिर कहानी ऐसी घूमी की जहांगीर ने उन्हें क़ैद कर दिया। उस क़िले में पचास से अधिक राजा बंद थे।
श्री हरगोविन्द सिंह जी को रिहा करने का आदेश होता है। अकेले रिहा होने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि सारा क़ैदियों को रिहा किया जाए। अंत में शर्त मान ली जाती है मगर एक शर्त जोड़ दी जाती है , जितने लोग आपका कपड़ा पकड़ कर बाहर आ सकते हैं, उन्हें ही रिहा किया जाएगा। अंत में उनके कपड़े से गाँठ बनती है और उसे पकड़ कर पचास से अधिक राजा रिहा होते हैं। गुरू साहिब का नाम पड़ता है बंदी दाता छोड़ साहिब।
इस तस्वीर को देखिए। बाहर आते हुए छठे गुरु के आगे सब झुके हुए हैं। क़िले का हथियारबंद प्रहरी भी सर झुकाए खड़ा है। बग़ल में सन्यासी भी सर झुकाए खड़े हैं। मैंने पूरी कहानी नहीं लिखी है। इसलिए नहीं लिखी है कि कुछ आप भी पता करें। जानने के रोमांच से सुंदर कुछ नहीं होता
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