Monday, December 31, 2018

वो क्या होना चाह रहा नहीं पता पर मैं “वो” होना चाह रहा


बहुत देर तक इस शख़्स को देखता रहा। सोचता रहा कि यह मैं होता तो क्या होता। मैं यही होना चाहता हूँ। लेकिन क्या वह वही रहना चाहेगा जो मैं होना चाहता हूँ। क्या उसे पता है कि वह क्या होना चाहता है? जिस ट्रक के नीचे से मैं उसे देख रहा था, क्या वह उस ट्रक को ख़रीदना चाहता होगा? चेहरे पर कोई भाव नहीं पर क्या पता मन में भाव हों। बिना भाव के कोई मन नहीं होता है। वह शख़्स धीरे-धीरे मेज़ पर लॉटरी की गड्डी सजाता रहा। सजाना भी उस काम का हिस्सा है जिसे करते हुए जीवन के एक और दिन को गुज़र जाना है। लॉटरी की सारी गड्डियाँ एक सीध में रखते रखते जब ऊब गया तो जेब से बीड़ी का पैकेट निकाला। कुछ देर तक पैकेट को इस हाथ से उस हाथ में बदलता रहा। फिर उससे भी धीमी रफ़्तार से लाइटर निकाला। सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा है। मेज़ पर नंबर की लिस्ट है। पेन से कुछ गोला बनाया है। फिर उस लिस्ट को रख देता है। दूसरे की क़िस्मत का नंबर उसके पास नहीं है। महीनों से किसी का नंबर नहीं आया। नंबरों का यह विक्रेता अपनी क़िस्मत के सवाल से मुक्त हो चुका है। देख रहा हूँ कि लाइटर और बीड़ी हाथ में लिए कुछ देर तक वह किसी फ़्रेम में फ़िक्स हो गया। वह अपने जीवन में है। मैं अपने जीवन में हूँ। मैं अपने जीवन से उसके जीवन को देख रहा हूँ। उसके जीवन से अपने जीवन को बदल लेना चाहता हूँ। उसके जीवन में भी जीवन है। नहीं होता तो देर तक बीड़ी हाथ में लिए नहीं सोचता। अपनी छोटी सी दुकान को गेंदे की माला से नहीं सजाता। मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ? क्या वह भी किसी चीज़ से भाग रहा है? या वह सिर्फ भागते हुओं को देखने के लिए रुका हुआ है? मैं क्यों सबका जीवन जीना चाहता हूँ? क्यों जिसे देखता हूँ वही हो जाना चाहता हूं। तभी अचानक बीड़ी जलती है। धुआँ उठता है। धुएँ के पीछे चेहरा हो जाता है। मेरी गाड़ी आगे बढ़ जाती है। रेल का फाटक खुल गया है। साल बीत गया है। जीवन बीत गया है।

No comments:

Featured Post

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प...

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प... : जिगर का टुकड़ा तड़पता रहा मां बेटे को लेकर इस हॉस्पिटल से उस हॉस्...