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Tuesday, April 20, 2021
Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प...
Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प...: जिगर का टुकड़ा तड़पता रहा मां बेटे को लेकर इस हॉस्पिटल से उस हॉस्पिटल भागती रही खबर वाराणसी की है वाराणसी जो योगी आदित्यनाथ के राम राज्य मे...
Wednesday, January 23, 2019
शुजा का आरोप गोपीनाथ मुंडे की हुई हत्या
*सैय्यद शुजा के आरोपों की जाँच क्यों नहीं सिर्फ खंडन क्यों ?*
गोपीनाथ मुंडे की मौत हत्या या हादसा ?
क्या पिता की मौत की कीमत पर बनी है पंकजा मुंडे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री ?
क्या इसलिए हो गयी मुंडे की हत्या क्योंकि वो EVM हैकिंग के राजदार थे ?
...... और भी बहुत कुछ जो चीख चीख कर कह रहे गोपीनाथ मुंडे की मौत #Accident नहीं सुनियोजित #Murder था
Friday, January 18, 2019
इश्क़ में शहर होना
‘इश्क़ में शहर होना’ के चार साल हो गए हैं। इन चार सालों में इसके आठ संस्करण निकले और पचीस हज़ार प्रतियाँ पाठकों की ज़िंदगी का हिस्सा हो गईं। प्रेमियों के साथ-साथ शहर के स्पेस में प्रेम को समझने वाले विद्वानों ने भी इसका अलग से पाठ किया। यह किताब क्रिएटिव राइटिंग कोर्स का हिस्सा बनी। पिछले साल अक्तूबर में अमरीका की येल यूनिवर्सिटी में साउथ एशिया स्टडी सर्किल में इस पर बातचीत हुई। इसका पाठ किया। मुंबई में टाटा लिट फेस्ट में कैरोल एंड्राडी ने टेक्स्ट एंड दि सिटी के नाम से चर्चा आयोजित की जो मुझे इस किताब की अब तक की चर्चाओं में सबसे अधिक पसंद हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की एक क़ाबिल प्रोफ़ेसर ने भी इसे अपने पर्चे का हिस्सा बनाया है। जिसका पाठ उन्होंने किसी सेमिनार में किया था। उनका नाम याद आते ही यहाँ लिखूँगा। मैंने वो पर्चा देखा नहीं। देखना चाहता हूँ।
मेरे अलावा विनीत कुमार ने भी ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ नाम से लिखा है। मुझसे बेहतर लिखा है। विनीत कुमार की किताब भी राजकमल से छपी है। एक तीसरी किताब ‘इश्क़ में माटी-सोना’ गिरीन्द्र नाथ झा ने लिखा है। तो लप्रेक श्रृंखला के तीन लेखक हुए। इसी 19 जनवरी को विनीत कुमार राइटिंग वर्कशॉप में इस पर बात करने वाले हैं। इसका आयोजन जगरनॉट प्रकाशन ने किया है। आप सभी जा सकते हैं।यह सब इस किताब के चौथे साल में हो रहा है। स्पीकिंग टाइगर्स ने इसका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया है। A City Happens In Love नाम से कवि अखिल कत्याल ने अनुवाद किया है। अखिल ने भी इस किताब को अपनी नज़र से समझा है। इश्क़ में शहर होना को छापा राजकमल प्रकाशन ने है मगर कई प्रकाशनों का प्यार इसे मिला है। मिल रहा है।
इस किताब के दो लेखक हैं। एक मैं और दूसरे विक्रम नायक। बल्कि विक्रम ही अकेले हैं जो तीनों किताबों के लेखक हैं। उन्होंने अपनी चित्रकारी से इसे अमर बना दिया है। तंग होते शहरों में सुस्त गलियों की तलाश में प्रेमी इस किताब को याद करते रहेंगे। विक्रम के स्केच सा शहर ढूँढते रहेंगे। मेरी वाली किताब में बारापुला फ्लाईओवर का एक प्रसंग है। बारापुला फ़्लाइओवर का जब विस्तार हुआ तो उसमें ख़राब होने वाली गाड़ियों को बीच रास्ते से हटाकर किनारे रखने की अलग से जगह जोड़ी गई है। मैं अक्सर वहाँ ओला उबर टैक्सियों के डाईवर को सुस्ताते देखता हूँ और उनकी कार के पीछे प्रेमियों को सेल्फी लेते ! एक लेखक के नाते अपनी किताब को लोगों के जीवन में घटते हुए देखते जाना भी इश्क़ में शहर होना है।
हमने तो ख़ूब सारी लघु प्रेम कथाएँ लिख डाली थीं। क्या मालूम कौन सी कथा अच्छी थी। सुदीप्ति ने उन कथाओं में से पाठकों के लिए चुना था। वैसे यह किताब संपादक सत्यानंद की कल्पना थी। जब पहली बार आई तो ख़ूब गुलाबी थी। किताब का कवर शानदार था। आठों संस्करण में कवर और उसका रंग कुछ न कुछ बदला है। इस बार तो गुलाबी से सफ़ेद हो गया है। ये कवर भी मुझे पसंद आया है। उर्दू में भी अनुवाद हो रहा है।
आप सभी पाठकों को ख़ूब सारा प्यार। हम सबको इश्क़ में शहर होते रहना है।
बिहार की हर हलचल एक नजर में
Friday, January 11, 2019
Thursday, January 10, 2019
Tuesday, January 1, 2019
Monday, December 31, 2018
वो क्या होना चाह रहा नहीं पता पर मैं “वो” होना चाह रहा
बहुत देर तक इस शख़्स को देखता रहा। सोचता रहा कि यह मैं होता तो क्या होता। मैं यही होना चाहता हूँ। लेकिन क्या वह वही रहना चाहेगा जो मैं होना चाहता हूँ। क्या उसे पता है कि वह क्या होना चाहता है? जिस ट्रक के नीचे से मैं उसे देख रहा था, क्या वह उस ट्रक को ख़रीदना चाहता होगा? चेहरे पर कोई भाव नहीं पर क्या पता मन में भाव हों। बिना भाव के कोई मन नहीं होता है। वह शख़्स धीरे-धीरे मेज़ पर लॉटरी की गड्डी सजाता रहा। सजाना भी उस काम का हिस्सा है जिसे करते हुए जीवन के एक और दिन को गुज़र जाना है। लॉटरी की सारी गड्डियाँ एक सीध में रखते रखते जब ऊब गया तो जेब से बीड़ी का पैकेट निकाला। कुछ देर तक पैकेट को इस हाथ से उस हाथ में बदलता रहा। फिर उससे भी धीमी रफ़्तार से लाइटर निकाला। सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा है। मेज़ पर नंबर की लिस्ट है। पेन से कुछ गोला बनाया है। फिर उस लिस्ट को रख देता है। दूसरे की क़िस्मत का नंबर उसके पास नहीं है। महीनों से किसी का नंबर नहीं आया। नंबरों का यह विक्रेता अपनी क़िस्मत के सवाल से मुक्त हो चुका है। देख रहा हूँ कि लाइटर और बीड़ी हाथ में लिए कुछ देर तक वह किसी फ़्रेम में फ़िक्स हो गया। वह अपने जीवन में है। मैं अपने जीवन में हूँ। मैं अपने जीवन से उसके जीवन को देख रहा हूँ। उसके जीवन से अपने जीवन को बदल लेना चाहता हूँ। उसके जीवन में भी जीवन है। नहीं होता तो देर तक बीड़ी हाथ में लिए नहीं सोचता। अपनी छोटी सी दुकान को गेंदे की माला से नहीं सजाता। मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ? क्या वह भी किसी चीज़ से भाग रहा है? या वह सिर्फ भागते हुओं को देखने के लिए रुका हुआ है? मैं क्यों सबका जीवन जीना चाहता हूँ? क्यों जिसे देखता हूँ वही हो जाना चाहता हूं। तभी अचानक बीड़ी जलती है। धुआँ उठता है। धुएँ के पीछे चेहरा हो जाता है। मेरी गाड़ी आगे बढ़ जाती है। रेल का फाटक खुल गया है। साल बीत गया है। जीवन बीत गया है।
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https://youtu.be/Cm4ospoha54
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