एक नजर
सरकती जाये है रुख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता
प्रशांत भूषण का कहना है कि अंबानी को दिया गया कॉन्ट्रैक्ट कोई आॅफसेट कॉन्ट्रैक्ट नहीं है. यह एक तरह से उनको दलाली दी गई है. उनकी बातों से ये प्रमुख सवाल उठते हैं?
1. वायुसेना से 126 विमान मांगे तो सरकार ने 36 का समझौता क्यों किया गया? कम विमान खरीदने का तर्क क्या है? समझौते के पहले डसो एविएशन के सीईओ ने एचएएल के साथ मिलकर बयान दिया कि हम एचएएल के साथ खुश हैं और वर्कशेयर एग्रीमेंट साइन कर दिया है. फिर एचएएल की अक्षमता की बात कैसे उठी?
2. 78 साल पुरानी भारतीय रक्षा कंपनी एचएएच को राफेल डील से बाहर क्यों किया गया? लगभग 51 विमान बना चुकी भारतीय नवरत्न कंपनी को बदनाम करने का अभियान क्यों चलाया जा रहा है?
3. भारत सरकार ने पहले से निर्धारित गाइडलाइन का पालन क्यों नहीं किया? कोई विदेशी कंपनी बिना भारतीय रक्षा मंत्री की मंजूरी के किसी प्राइवेट कंपनी को आॅफसेट कॉन्ट्रैक्ट नहीं दे सकती. फिर भारत सरकार यह कैसे कह सकती है कि हमारा कोई लेना देना नहीं है?
4. समझौते के एक दिन पहले तक एचएएल की चर्चा थी, फिर रिलायंस का प्रवेश कैसे हुआ? रिलायंस को 30 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाने के पीछे का असल खेल क्या क्या है?
5. प्रति विमान का दाम करीब एक हजार करोड़ अधिक कैसे पहुंच गया?
6. रक्षामंत्री चुप हैं और वित्त मंत्री अरुण जेटली मुखर हैं. अगर सबकुछ ठीक है तो खुद रक्षामंत्री सारी बातें सामने क्यों नहीं रखतीं.
7. जब फ्रांस कह रहा है कि विमान की कीमत पर कोई गोपनीयता नहीं है तो भारत सरकार गोपनीयता समझौता का बहाना क्यों बना रही है?
8. हिंदुस्तान के सभी विभागों ने मिलकर जो सौदा तय किया था, उसे अचानक किसकी अनुमति से बदला गया?
अगर किसी को अब भी शक हो कि सरकार ने घोटाला नहीं किया तो उसे ये शेर पढ़ना चाहिए-
वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
#राफेल #Rafel
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