अपने नक्कारेपन और कमियों को छुपाने के लिए न्याय व्वस्था पर दवाब डाल रही और आक्षेप लगा रही मोदी सरकार - सुप्रीम कोर्ट
जब कभी न्यायालिका समाज के अंतिम जगह पर पहुंच गए लोगों के हित में कोई टिप्पणी या आदेश देती है तुरंत कार्यपालिका और विधायिका द्वारा अतिक्रमण का आरोप लगाया जाता है। सुप्रीमकोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने इसकी कड़ी भर्त्सना करते हुए कहा कि अपने नक्कारेपन और कर्तवयहीनता को छुपाने के लिए कोर्ट पर अंगुली उठाई जा रही
न्यायपालिका के PIL की सुनवाई की आलोचना करने पर मोदी सरकार को निशाने पर लेते हुए जस्टिस मदन बी लोकुर, एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि न्याय की यह अवधारणा सामाजिक परिवर्तन का बड़ा हथियार बन चुकी है , SC द्वारा ऐसे मामलों में निर्देश देने से कई बदलाव देखे गए हैं
पीआईएल के माध्यम से हमने पर्यावरण, सामाजिक न्याय, मानवाधिकार अतिक्रमण, संविधान के अनुच्छेद 21 की उपेक्षा आदि के मामलों पर सुनवाई की , कुछ दिनों से सरकारी स्तर पर “आइडिया ऑफ पीआईएल" को चुनौती देने की कोशिश हो रही और इसे “जूडिशल एक्टिविजम मंत्र" का नाम देकर इसे खत्म करने की कवायद चल रही , ज्यादातर मामलों में ये मंत्र कुछ और नहीं बल्कि सरकार की नाकामी को छुपाने का एक तरीका है।'
जजमेंट लिखने वाले जस्टिस लोकुर ने कहा, 'इस बात का अहसास होना चाहिए कि PIL के जरिए हाशिए पर जा चुके लाखों को लोगों को आवाज मिली है। इनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं , सरकार इससे परेशान हो रही
जस्टिस लोकुर (SC)
इसी के साथ जेलों में सुधार के लिए SC ने अमिताव रॉय के नेतृत्व में तीन सदस्य कमिटी गठित किया है जिसमें ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च और डिवेलपमेंट डायरेक्टर जनरल (जेल) तिहाड़ जेल भी शामिल हैं , समिति 1382 जेलों में अध्यन कर मूलभूत सुविधाओं में सुधार और कैदियों में सुधार पर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी
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