Friday, October 26, 2018

इंसान के भेजे की लाइब्रेरी देखी, 1927 का भेजा देखा ✍️ The Real Hero Ravish Kumar



ब्रेन लाइब्रेरी ; जो डॉ हार्वी कशिंग की याद में बनी है


भेजा मतलब ब्रेन

कशिंग सेंटर में जाते ही आप एक ऐसे जुनूनी डॉक्टर की आभा से घिर जाते हैं जो 1939 में इस दुनिया से जा चुका था। हार्वी कशिंग की तमन्ना थी कि मेडिकल के छात्रों के लिए कालेज से अलग इमारत में लाइब्रेरी बने। येल मेडिकल लाइब्रेरी को बनते हुए तो नहीं देख सके मगर दुनिया छोड़ने से पहले ख़बर मिल गई थी कि मेडिकल लाइब्रेरी बनेगी। हम उसी लाइब्रेरी के तहख़ाने में कई सीढ़ियों से उतरते हुए इस ब्रेन लाइब्रेरी में आए जो डॉ हार्वी कशिंग की याद में बनी है।




कशिंग ने 1891 में येल यूनिवर्सिटी से ही स्नातक की पढ़ाई की और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से चिकित्सा की पढ़ाई कीजान हापकिन्स हॉस्पीटल में काम किया जहाँ एक वक़्त में न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में कई अनुसंधान हुए। कशिंग हार्वर्ड में सर्जन इन चीफ़ भी बने। एक साल में सैकड़ों आपरेशन किया। रिटायर होने के बाद कशिंग येल यूनिवर्सिटी आ गए।




अली और वफ़ा के साथ इस लाइब्रेरी तक पहुँच कर लगा कि 1920-30 के साल में आ गया हूँ। यहाँ अचार के मर्तबान में तरह तरह के ब्रेन ट्यूमर से मरे लोगों का भेजा रखा है। मरने वाले का नाम और मरने का कारण भी लिखा है। किताब की तरह मर्तबान रखा है। अली ने ब्रेन के बारे में काफ़ी कुछ बताया। मुझसे लिखने में ग़लती न हो जाए इसलिए यहाँ नहीं लिख रहा हूँ। अली डॉक्टर नहीं हैं मगर उनका काम मेडिकल के लिए है। मैंने बताया कि वे मधुमेह के सपाट पाँव वाले मरीज़ों के लिए शोध कर रहे हैं





यहाँ मेडिकल के छात्र इंसान के ब्रेन का अध्ययन कर सकते है। देख सकते हैं। पढ़ सकते हैं। आज तो हर चीज़ का एक्स रे और फ़ोटो है मगर उस वक़्त मेडिकल इलस्ट्रेटर की पढ़ाई होती थी जो शरीर के अंगों का स्केच बनाते थे जिसका इस्तेमाल पढ़ाई में होता था। एक तस्वीर में आप अली को दराज़ खोलते देखेंगे। अली दिखा रहे हैं कि फीटस यानी भ्रूण जब थोड़ा विकसित हो जाता है तो कैसा दिखता है। पहली बार भ्रूण देखने का अवसर मिला। यहाँ पर न्यूटन के हाथ की लिखावट भी है मगर मुझे देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका। फ़िलहाल उसे हटा दिया गया था। अली मुझे वही दिखाने ले गए थे।



मेडिकल साइंस में येल यूनिवर्सिटी के कई योगदान हैं। मैंने ब्रेन लाइब्रेरी इसलिए दिखाई ताकि मेडिकल के छात्र इस तरह के सपने देखें। अगर अभी तक ऐसी सुविधा नहीं है तो ख़ुद बनाने की सोचें। कुछ बड़ा करें जिससे सौ साल बाद कोई उन्हें याद करे। यहाँ भी आइये और दवा कंपनियों की नौकरी छोड़ विज्ञान के क्षेत्र को समृद्ध करें।



एक छात्र ने बताया कि भारत में साइंस का अनुदान मिलने के पहले ही उपकरण बनाने वाली कंपनियों के दलाल वैज्ञैनिकों को फ़ोन करने लगते हैं कि आपको ग्रांट मिलेगा तो क्या वे फ़लाँ का उपकरण ख़रीदेंगे, ख़रीदेंगे तो कितना कमीशन लेंगे। तो अलग अलग चीज़ों को जानिये और दंगाई होने के लिए बेचैन हो रहे अपने नेताओं से मेडिकल शिक्षा के बेहतर संसाधन और माहौल की माँग करें।

No comments:

Featured Post

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प...

Jan gan man ki baat: उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प... : जिगर का टुकड़ा तड़पता रहा मां बेटे को लेकर इस हॉस्पिटल से उस हॉस्...