Tuesday, October 9, 2018

आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल शर्मा, निदेशक शिव प्रिया और एक अन्य निदेशक अजय कुमार को जेल....


आम्रपाली के सीएमडी समेत तीन निदेशक गिरफ्तार, SC ने कहा- हमसे लुकाछिपी न खेलें

नई दिल्ली (जेएनएन)। “आम्रपाली समूह” के खिलाफ नियमित सुनवाई कर रहे “सुप्रीम कोर्ट” ने मंगलवार को CMD समेत तीन निदेशकों को “जेल” भेज दिया है सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल शर्मा, निदेशक शिव प्रिया और एक अन्य निदेशक अजय कुमार को जेल भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों को कोर्ट से ही तत्काल “गिरफ्तार” करा दिया।


मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट आम्रपाली समूह में हुई वित्तीय अनियमितताओं की फॉरेंसिक जांच करा रहा है। इसके लिए बिल्डर को ऑडिटर्स को संबंधित दस्तावेज सौंपने थे। बिल्डर की तरफ से दस्तावेज सौंपने में लगातार आनाकानी की जा रही थी। मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली समूह को चेतावनी देते हुए सख्त लहजे में कहा कि वह SC से लुकाछिपी का खेल न खेलें।

सुप्रीम कोर्ट ने “बिल्डर” की तरफ से कोर्ट में पेश वकील से सख्त लहजे में पूछा कि अब तक उन्होंने ऑडिटरों को “फॉरेंसिक ऑडिट” से संबंधित दस्तावेज क्यों उपलब्ध नहीं कराए। मालूम हो कि आम्रपाली समूह सुप्रीम कोर्ट को लगातार गुमराह करने का प्रयास कर रहा था। इससे नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल शर्मा समेत अन्य निदेशकों को जेल भेजने की चेतावनी दे चुका था।

“सुप्रीम कोर्ट पहुंची नोएडा पुलिस”
सुप्रीम कोर्ट में आम्रपाली समूह के निदेशकों की गिरफ्तारी के बाद नोएडा पुलिस तीनों को अपनी कस्टडी में लेने के लिए रवाना हो चुकी है। नोएडा की थाना सेक्टर-39 पुलिस तीनों निदेशकों को सुप्रीम कोर्ट से अपनी कस्टडी में लेगी। इसके बाद नोएडा पुलिस ही तीनों आरोपी निदेशकों को जेल भेजेगी। मालूम हो कि आम्रपाली ग्रुप की ज्यादातर परियोजनाएं दिल्ली से सटे यूपी के जिला गौतमबुद्धनगर अंतर्गत नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में हैं। यहीं वजह है कि आम्रपाली बिल्डर के खिलाफ नोएडा के थाना सेक्टर-39 समेत जिले के कई थानों में अलग-अलग रिपोर्ट दर्ज है या शिकायतें लंबित हैं। यही वजह है कि नोएडा पुलिस तीनों निदेशकों को सुप्रीम कोर्ट से अपनी कस्टडी में ले रही है।

बायर्स के साथ प्राधिकरण और बैंकों को भी लगाया चूना
आम्रपाली ग्रुप अपने ज्यादातर निवेशकों से फ्लैट की 80 से 90 फीसद कीमत वसूल चुका है। आलम यह है कि कई प्रोजेक्ट में निवेशक 100 फीसद तक पैसा तक दे चुके हैं, लेकिन 7 साल बीतने के बाद भी ग्रुप का कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं है। आम्रपाली बिल्डर पर नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण के साथ-साथ कई बैंकों व फाइनेंस कंपनियों का भी काफी पैसा बकाया है। बिल्डर लंबे समय से इनका भी पैसा नहीं दे रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, 40 हजार से भी ज्यादा निवेशक आम्रपाली के विभिन्न प्रोजेक्टों में फंसे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट इनके लिए उम्मीद की आखिरी किरण है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था भरोसे लायक नहीं है बिल्डर
हालात किस कदर बदतर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम्रपाली की ओर से पूर्व में सुप्रीम कोर्ट में परियोजनाओं को पूरा करने की योजना की दलील दिए जाने पर कोर्ट ने कहा था कि आप लोग भरोसे लायक नहीं हैं। 2011-12 की परियोजना है और अब 2018 चल रहा है, लेकिन घर अभी तक नहीं मिला। गड़बड़ी का गणित यह कहता है कि अगर 40 हजार निवेशकों ने औसत 30 लाख रुपये का फ्लैट खरीदा है कि कुल मिलाकर बिल्डर ने 12000 करोड़ रुपये निवेशकों से लिए हैं।

“निवेशकों को झांसे में लेता रहा आम्रपाली”
जानकारों की मानें तो आम्रपाली बिल्डर ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत लोगों से अपने आवासीय प्रोजेक्ट में पैसे लगवाए। इसके लिए उसने कई तरह के प्लान भी बनाए, जिसके झांसे में निवेशक आते रहे। बताया जाता है कि आम्रपाली बिल्डर ने खरीदारों को झांसे में लेने के लिए पूरी योजना के साथ फ्लैक्सी प्लान बनाया। इसके तहत बिल्डर ने हाईराइज इमारत में ज्यादातर मंजिल का निर्माण होने पर 95 फीसद पेमेंट की शर्त रखी, फिर बैंकों ने इसी आधार पर लोन भी हुए। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने साजिश के तहत 18 मंजिला इमारतों को 22 मंजिल तक बनाने का फैसला लिया, लेकिन फ्लैक्सी प्लान में बदलाव नहीं किया। नियम के अनुसार मंजिल बढ़ने पर प्लान में भी बदलाव होना चाहिए था।

बिल्डर काम ठप करके भी पैसा लेता रहा निवेशकों से
जानकारों की मानें तो बिल्डर ने सभी प्रोजेक्ट को एकसाथ शुरू करने का लालच देकर बुकिंग जारी रखी। वहीं, फ्लैटों की बुकिंग में तेजी आई, लेकिन काम ठप पड़ गया। इसके साथ ही निवेशकों से जिस प्रोजेक्ट के लिए पैसे लिए गए, उन पैसों को दूसरे प्रोजेक्ट में लगाया। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने नियम-कानून को ठेंगे पर रखकर बिल्डर प्रोजेक्ट का पैसा दूसरी बिजनेस वाली अपनी कंपनियों में लगा दिया गया। जब आर्थिक मंदी के दौर में बुकिंग घटी तो एकसाथ सभी प्रोजेक्ट में काम ठप पड़ गया और बिल्डर ने चालाकी से दिवालिया होने की तरफ खुद चल पड़ा

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