करतारपुर साहिब कॉरिडोर की नींव रख दी गई है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बुधवार (28 नवंबर 2018) को कॉरिडोर का उद्घाटन किया
इस मौक़े पर इमरान ख़ान ने भारत के साथ दोस्ती की बात दोहराई और कहा कि कश्मीर के मसले को भी सुलझाया जा सकता है.
इस समारोह में भारत की ओर से पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल मौजूद थीं. कॉरिडोर के शिलान्यास के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू बोले कि हिंदुस्तान जीवे, पाकिस्तान जीवे. उन्होंने कहा कि मुझे कोई डर नहीं, मेरा यार इमरान जीवे
अपनी पूरी श्रद्धा जताते हुए भारत सरकार की तरफ़ से इस समारोह में शामिल होने पहुंचीं केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने कहा कि 70 साल से हर सिख की यह इच्छा थी. जिस धरती पर सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव जी का अवतार हुआ वो धरती आपकी. हम चार किलोमीटर की दूरी से यहां नमन करते हैं. 70 साल में पहली बार मेरे जैसे कई सिखों को यहां आकर नमन करने का मौक़ा मिला
पाकिस्तान ने इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी न्योता दिया था लेकिन अलग-अलग कारणों से दोनों ने इस कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया.
गुरुद्वारा दरबार साहिब पाकिस्तान के करतारपुर में है. माना जाता है कि करतारपुर साहेब में गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 साल बिताए थे. यह सिखों की गहन आस्था का केंद्र है.
गुरुद्वारा दरबार साहिब पाकिस्तान के ज़िला नारोवाल में है जो लाहौर से करीब 120 किलोमीटर दूर है. ये गुरुद्वारा भारत की सीमा से क़रीब तीन किलोमीटर दूर है, लेकिन पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव ने इसे तीर्थयात्रियों के लिए बहुत दूर बना दिया है.
भारत सरकार ने भारतीय सीमा के नज़दीक एक बड़ा टेलिस्कोप लगाया है जिसके ज़रिए तीर्थयात्री करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते हैं
अब डेरा बाबा नानक से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक गुरुद्वारा दरबार सिंह करतारपुर के लिए कॉरिडोर बनाया जायेगा और इसका पूरा खर्चा केंद्र सरकार उठायेगी.
कहा जाता है कि गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर कुदरत का बनाया अद्भुत स्थान है. पाकिस्तान में सिखों के और भी धार्मिक स्थान हैं- डेरा साहिब लाहौर, पंजाब साहिब और ननकाना साहिब उन गांव में हैं जो भारत-पाक सीमा के क़रीब है
लाहौर से गुरुद्वारे की तरफ़ बढ़ने पर जैसे ही आप गुरुद्वारे के नज़दीक शकरगढ़ रोड़ तक आते हैं, आपको ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है.
हरे भरे खेत आपका स्वागत करते हैं, बच्चे खेतों में खेलते और ट्यूबवेल से पानी पीते नज़र आते हैं. इन्हीं खेतों के बीच एक सफेद रंग की शानदार इमारत नज़र आती है. गुरुद्वारे के अंदर एक कुंआ है. माना जाता है कि ये कुंआ गुरुनानक देव जी के समय से है और इस कारण कुंए को लेकर श्रद्धालुओं में काफ़ी मान्यता है.
कुंए के पास एक बम के टुकड़े को भी शीशे में सहेज कर रखा गया है. कहा जाता है कि 1971 की लड़ाई में ये बम यहां गिरा था. यहां सेवा करने वालों में सिख और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं.
रावी नदी में आई बाढ़ के कारण गुरुद्वारे को काफ़ी नुकसान पहुंचा था. उसके बाद 1920-1929 तक महाराजा पटियाला ने इसे फिर से बनवाया था. इस पर 1,35,600 का खर्चा आया.
करतारपुर साहिब के बारे में पहली 1998 में भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की थी और उसके 20 साल बाद ये मुद्दा फिर सुर्खियों में आया है
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